उस हरी दूब पर बारिश की बूँदें
उस ठंडी हवा से पत्तों का सरसराना
और पानी की बूंदों का यूँ गिरना
मानो नदी से नहा कर निकली सुंदरी
सर हिला कर बाल सुखा रही हो
फिर इन्ही बूंदों को सूरज की एक किरण
जब छू कर निकलती है
जी करता है मेरा भी उस बूँद को पकड़ लूँ
सूरज की मंद रौशनी को मुट्ठी में भर लूँ
उस पत्ते की तरह बारिश में नाचूं
पर ये सलाखें
जो नज़ारे दिखाती भी हैं
और उन तक पहुँचने नहीं देती
ये सलाखें
यही मेरा दायरा है
यही मेरी दुनिया है