Salakhen

07 Sep 2011

उस हरी दूब पर बारिश की बूँदें

उस ठंडी हवा से पत्तों का सरसराना

और पानी की बूंदों का यूँ गिरना

मानो नदी से नहा कर निकली सुंदरी

सर हिला कर बाल सुखा रही हो

फिर इन्ही बूंदों को सूरज की एक किरण

जब छू कर निकलती है

जी करता है मेरा भी उस बूँद को पकड़ लूँ

सूरज की मंद रौशनी को मुट्ठी में भर लूँ

उस पत्ते की तरह बारिश में नाचूं

पर ये सलाखें

जो नज़ारे दिखाती भी हैं

और उन तक पहुँचने नहीं देती

ये सलाखें

यही मेरा दायरा है

यही मेरी दुनिया है